केवीके कर्मचारियों के साथ भेदभाव पर फूटा आक्रोश, 27 मई से आंदोलन की चेतावनी…@

15 दिन में समाधान नहीं होने पर राज्यव्यापी विरोध, तकनीकी कर्मचारी संघ ने सौंपा ज्ञापन
कशिश न्यूज़|बिलासपुर
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय (आईजीकेवी) के अधीन कार्यरत कृषि विज्ञान केंद्रों (केवीके) के कर्मचारियों के साथ हो रहे संस्थागत भेदभाव और संवैधानिक अधिकारों की अनदेखी को लेकर तकनीकी कर्मचारी संघ ने मोर्चा खोल दिया है। संघ ने विश्वविद्यालय प्रशासन को चेतावनी दी है कि यदि 15 दिनों के भीतर समस्याओं का समाधान नहीं किया गया तो 27 मई से राज्यव्यापी आंदोलन किया जाएगा।

संघ ने इस संबंध में कुलपति को एक ज्ञापन सौंपते हुए कहा है कि केवीके के अधिकारियों और कर्मचारियों को न केवल पेंशन और सामाजिक सुरक्षा जैसे मूलभूत अधिकारों से वंचित किया गया है, बल्कि सेवा शर्तों का भी लगातार उल्लंघन किया जा रहा है।
प्रमुख आरोप और समस्याएँ:
पेंशन और सामाजिक सुरक्षा से वंचन: केवीके कर्मचारियों को एनपीएस और ओपीएस जैसी योजनाओं से अनुचित रूप से बाहर रखा गया है।
मेडिकल और अन्य भत्ते बंद: कर्मचारियों को बिना पूर्व सूचना के मेडिकल भत्तों से वंचित कर दिया गया, जिससे दूरदराज क्षेत्रों में कार्यरत कर्मचारियों को गंभीर कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।
कैरियर उन्नयन योजना में अनियमितता: योग्य कर्मचारियों को पदोन्नति और वेतन वृद्धि से वंचित किया जा रहा है।
सेवानिवृत्ति आयु में भेदभाव: केवीके कर्मचारियों को 60 वर्ष में ही सेवानिवृत्त किया जा रहा है, जबकि विश्वविद्यालय के अन्य कर्मचारियों के लिए यह सीमा 62 या 65 वर्ष है।
सेवानिवृत्ति उपरांत सुविधाओं की अनदेखी: पेंशन, ग्रेच्युटी और चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध नहीं कराई जा रही हैं।
अस्थायी नियुक्तियों पर आपत्ति: विश्वविद्यालय द्वारा की जा रही विशुद्ध अस्थायी नियुक्तियों को आईजीकेवी अधिनियम 1987 और आईसीएआर समझौते का उल्लंघन बताया गया है।
संघ की प्रमुख मांगें:
- केवीके कर्मचारियों को विश्वविद्यालय के समकक्ष सेवा लाभ प्रदान किए जाएँ।
- एनपीएस/ओपीएस, मेडिकल भत्ते और कैरियर उन्नयन योजना को तत्काल बहाल किया जाए।
- सेवा-निवृत्ति की आयु 62 या 65 वर्ष की जाए।
- सेवानिवृत्त कर्मचारियों को पेंशन, ग्रेच्युटी और चिकित्सा लाभ दिए जाएँ।
- विवादित अस्थायी नियुक्तियों के सभी विज्ञापन तत्काल रद्द किए जाएँ।
आंदोलन की चेतावनी
संघ ने स्पष्ट रूप से कहा है कि यदि 15 दिनों के भीतर इन मांगों पर सकारात्मक कार्यवाही नहीं हुई, तो संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) और (b) के तहत राज्यभर में आंदोलन शुरू किया जाएगा। यह आंदोलन विश्वविद्यालय की शैक्षणिक, अनुसंधान और प्रसार गतिविधियों को प्रभावित कर सकता है। संघ ने चेताया है कि ऐसी स्थिति के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन की निष्क्रियता और भेदभावपूर्ण नीतियाँ ही जिम्मेदार होंगी।